
Guru dikcha kyo jaruri ha Mahatv Kya ha
Guru dikcha kyo jaruri ha Mahatv Kya ha
गुरू की महता :-
जब हम बच्चे थें तो माँ हमारी गुरू थी और स्कूल ही नहीं शु शु करना भी सिखाई है कहने का तात्पर्य की हर कार्य को गुरू ने सिखाया है, पर जब बडे होते गये तो गुरू की महत्व को भूल गये। बगैर गुरु के बच्चा खाना भी नहीं खाया तो योग ,ध्यान की बात तो दुर ही है। बच्चा पूरी तरह माँ यानी गुरू पर निर्भर होता है माँ और बच्चा अलग नहीं होते ईस कला को सीख लें यानी गुरू, मंत्र और शिष्य एक हो जायें जीवन की हर क्षेत्र में सफलता मिलेगी।
Guru Mahatv Kya ha
एक मात्र गुरु ही शिष्य की भौतिक एवं आध्यात्मिक सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले परम तत्व होते हैं, गुरु से मन्त्र का जन्म होता हैं और मन्त्र से देवता उत्पन्न होते हैं, जो शिष्य गुरु मुख से महा मन्त्र प्राप्त करता है उसको पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती हैं गुरु के बताए मार्ग पर चल कर ही हम अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर सकते है, केवल गुरु ही शिष्य को सही दिशा निर्देश दे सकते है।
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Guru dikcha kyo jaruri
शिष्य के हृदय में हरदम गुरु की चेतना व्याप्त रहती हैं ठीक उसी प्रकार, जैसे हनुमान जी के हृदय में श्री राम जी की छवि। हनुमान ने कहा कि मेरे हृदय में केवल एक चेतना पुन्ज व्याप्त है और उन्होंने अपना सीना फाड़कर दिखा दिया कि राम के सिवा उनके हृदय मे कोई स्थान नहीं।
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शिष्य, गुरु से उसीप्रकार प्रेम करते है
शिष्य और किसी अन्य मे मूलभूत अंतर यही होता है, कि शिष्य के पास गुरु होता हैं। वे गुरु जिनके पास दिव्यदृष्टि होता हैं जो भूत भविष्य को देख रहे होते है, जिन्हें मालूम होता है कि शिष्य की ऊर्जा को किस दिशा में व्यय करनी है मनुष्य जीवन को सार्थकता प्रदान करना है इस लिए शिष्य निश्चिंत होजाता हैं।
गुरु और शिष्य का नाता जल और मीन के समान होता हैं।
Guru dikcha kyo jaruri ha Mahatv Kya ha
शिष्य की वास्तविक शक्ति तो उसके सदगुरुदेव की ही होती हैं सद्गुरु से वह एकाकार हैं तो बेशक समस्त संसार उसका शत्रु हो जाए, उसका अहित नही हो सकता है। शिष्य तो केवल एक बूंद होता हैं लेकिन गुरु तो समुद्र हैं बूंद समुद्र में मिलेंगे तभी तो बादल बनकर हवाओं के साथ बह कर वर्षा की बूंदों के साथ एकबार फिर समुद्र में विसर्जित हो जाएगी और गुरु को स्वयं ही आगे बढ़ कर कुछ ऐसी क्रिया करनी होगी कि शिष्य कुछ बन सके, उसमें शिष्यत्व भाव का पूर्णता से जागरण हो सके, क्योंकि शिष्यता का यही भाव हैं
गुरु शिष्य के जीवन में उर्ध्वगामी प्रदान करते है। जो शिष्य को योग रुपी ज्ञान से आध्यात्मिक और भौतिक रुप से पूर्ण करने में सक्षम होते हैं। उसमे गुरु मे सम्पूर्ण चराचर ब्रम्ह का ज्ञान स्थापित कर सकते हैं। गुरु और शिष्य देहगत अलग दिखते हैं परंतु हृदय की धड़कनें एक ही होती हैं।
Guru dikcha kyo jaruri ha Mahatv Kya ha
जीस भी क्षेत्र में सफलता चाहते हैं पहले शीष्य को गुरू का बनना सीखना चाहिए न की गुर को बनाना ,अगर आप गुरू का बन सके तो आप धन भागी हैं क्योंकि आप के दादा, पीता या पडोसी गुरू का नही बना था नहीं तो मुक्त आत्मा होता। जब साधक गुरू, मंत्र और शिष्य तिनो एक हो जाते हैं
Guru dikcha kyo jaruri ha Mahatv Kya ha
तो ईसे ही माहासमाधि कहते हैं, कुछ लोग ईसे कैवल्य मुक्ति कहते हैं।
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