साधना में सफलता, साधना में सावधानी
साधना में सफलता, साधना में सावधानी
साधना में सफलता, साधना में सावधानी लेख में आप पढ़ेंगे की साधना में क्या सावधानी आपको करना चाहिए और साधना करते वक्त किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। एक शिष्य से क्या गलती होती है ,जिनके कारण पाया हुआ आनंद भी खो जाता है तो आप इस लेख को पूरा पढ़ें और साधना के बारे में सारे साधना में सावधानियों को जाने ।
साधना में सफलता साधना में सावधानी
साधना में सफलता, साधना में सावधानी
जीव ही ब्रम्ह है पंचदशी का यह माहा वाक्य है।
माने जिव में शिवत्व बीज रूप में समाहित छुपा है ,और बीज को योग्य पर्यावरण मिलने पर यह अंकुरित हो जाता है और विशाल बडा वृक्ष बन सकता है ।
आप से सवाल :-
बढ़ और पीपल के एक छोटे से बीज में क्या विशाल वट वृक्ष,पीपल का पेड़ नही छूपा है ?
लेकिन यह छोटा सा बीज फुख मारने से उड़ जाएगा । चुल्लू भर पानी में बह जाएगा , लेकिन यदि इस बीज को योग्य जमीन में बोकर रोप कर खाद, पानी दे कर , ईनकी सूरक्षा की जाए तो यह वट वृक्ष,पीपल व्रृक्ष बन जाता है । फिर यह तूफानों में भी अडीग रहता है यात्रियो को छांव ,और पक्षियों का आश्रय,वीश्राम स्थान बन जाता है ।
नए-नए साधकों की स्थिति भी ठीक गर्भवती स्त्री के समान होती है । बच्चे को जन्म देने वाली मां अपने गर्भ के लाल ”बच्चे ” को संभालने के लिए केयर करती है ।
1.खानपान ,
2. आचार,
3.व्यवहार पर नियंत्रण रखती है ।
4.मैडिसिन ,बीटामीन लेना की कंही गर्भस्थ बीज को हानि न पहुंचे ।
तुममे भी चैतन्य का दैवीय बीज बोया हुआ है ,जीस दिन से साधन करने लगे हो, गुरू मंत्र जप अनुष्ठान चालू करे हो । ईस दैवीय बीज की ध्यान से रक्षा करें ।
जैसे :-
जमीन में बोया बीज को चीटियां , कीडे खा ना जाए पक्षी चुग ना ले ,अंकुर से पत्ते आने के बाद बकरी उसे चबा न जाए ,
इन सब बातों का ध्यान रखा जाता है ऐसे ही साधक को भी अपने दैवीय बीज की रक्षा में सतर्क रहना पडता है।

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सावधानी :-
1. असाधक का संग ना करे
2. आहार-विहार सुद्ध रखे
3.काम क्रोध से बचे
4. अनावश्यक बोलना ,देखना और दुनिया के पचड़े में उलझना बिलकुल छोड़ दे !
5.फालतू की बातें सुनना छोड़ दो।
6.सय्यम के द्वार खोल दोगे छन्नी जैसे हो जाओगे तो यह अमृत टीकेगा नहीं ।
अभी उसका खयाल नहीं आएगा , परंतु जब अवसर चूक जायेगा । यह अमृत मिलना बंद हो जाएगा । जब पंछी के समान मुक्त स्वभाव वाले संत फकीर, आपका गुरू जिसके समझाईश फटकार पर , आप को बुरा लगा था। जब संत अपने परम धाम चले जाएंगे फिर पता चलेगा उनका महत्व और तब आपको पश्चाताप के पत्थर के सिवा हाथ में कुछ नहीं आएगा।
साधना में सफलता, साधना में सावधानी
आतः हाथ में आए हुए वर्तमान को पहचानो अपने गुरू का पूरा लाभ लो । बताये साधना को करो।
गुरू ज्ञान की गंगा बहती है तब तक गोता लगा लो ।
जिन्हें इस चीज की समझ है कद्र है वह तो पाने योग्य को प्राप्त कर लेंगे ।
बाकीं के हाथ मलते ही रह जाएंगे और सदा पछतायेंगे , ज्यों – ज्यो सद्गुरु की कृपा हजम करते जाओगे त्यों – त्यों मधुरता के द्वार खुलते जाएंगे ।
मधुरता का खजाना तो प्रत्येक मनुष्य के भीतर ही भरा है । परंतु उसके द्वार बंद है और चाबीयां गुम हो गई है। गुरु द्वार पर सभी तालो की चाबी लगाई जाती है।
कुछ विचित्र ,खराब तालो को तो ठोकर भी मारनी पडती है। गुरू द्वार एक अध्यात्मिक प्रेकटीकल प्रयोगशाला है ।
साधक अपनी अंदर छूपी हूई संभावना को पहचान ले तब उसकी रक्षा करने की रूची जग जायेगी। तब साधना करने में रस मिलेगा गुरू की क्रपा से बीज मे अंकुर तो आ जायेगी लेकिन साधक संभाल ”रक्षा ” न करे तो मेहनत व्यर्थ चली जाती है।
गर्भवती महिला को तो हाथ मांस की शरीर को जन्म देने है जबकि साधक को तो परमानंद ईश्वर को जन्म देने है तो समझो कितना अधिक केयर करने की आवश्यकता है।
1. आहार- विहार और
2.व्यवहार सुद्ध रखो।
3. सुद्ध और सात्विक लोगों का ही संग करो आम जन लोगो का संपर्क जीतना कम कर सको करो।
4. तुमसे जो अध्यात्मिकता में जो निम्न हो उन से बचो।

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5. किसी से नफरत ना करो परंतु तुम्हारे साधना की रक्षा करो ।
6. सभी जीवो के प्रति भीतर से प्रेम रखो परंतु उनके कुसंस्कार तुम्हें न लगे ध्यान रखो।
7.अन्य लोगों का संपर्क जीतना हो सके उतना टालो।
8. सजाति संग कर साधना का प्रवाह विकसित करे।
साधना में सफलता, साधना में सावधानी
अफसर और चपरासी दोनों इंसान ही है परंतु दोनों की योग्यता अलग है, दोनो की ज्ञान स्तर अलग है ,दोनो को एक ही श्रेणी में नहीं तौला जाता है। तुम भी अपनी श्रेणी वाले माने साधक लोगों के साथ उठो- बैठो व्यवहार करो।
श्रद्धालुओं का संग करो , यदि तुम सावधान नहीं रहे तो साधना तोड़ने का प्रयास चारों ओर से होगा । नन्हा सा दिया हवा के झोंके से बुझ जाएगा , निंदा खोर निंदा करेंगे , और व्यवहार चतुर तुम्हारे आगे कर्तव्यों का ढेर खड़ा कर देंगे ।
ईस सब से बच जाओगे तो सतगुरु की ओर से कसौटा के थपेड़ों से विचलित हो जाओगे।गुरू की फटकार सहन नहीं होगी तब फैल हो जाओगे । गुरु की कसौटी से सही सलामत निकलने वाले तो विरले ही साधक होते हैं।
शिल्पी का प्रहार जो पत्थर सहता है वही पत्थर तो सुंदर मूर्ति रुप बनता है और मंदिर में पूजा जाता है।
तुमसे क्या अच्छा हुआ ईस पर ध्यान ना देकर आपकी क्या गलती है उन्हें सुधारने में गुरु तत्पर रहते हैं।
यह तो अध्यात्म का अदभुत मार्ग है , आप का मन कब धोखा दे जाए गुरु के फटकार से गुरु के तराशने से आप समझ नहीं पाओगे।
सद्गुरू की कसौटी
और अगर टूट गए तो फिर आप बिखर जाओगे ,गुरु के फटकार से आप अगर टूट गए तो कुछ कर नहीं पाओगे। ईस मार्ग में खारे – खट्टे सभी आयेगा।
साधक तो समझता है कि मैं तो गुरु के उपदेश के अनुसार चल रहा हूं शास्त्र के अनुसार चल रहा हूं लेकिन कई बार मन ही हमें संचालित करते रहता है।
गुरू की उपदेशों का अपना ही मनगढ़ंत अर्थ लगाकर मन आपको क्षलते रहता है।
परंतु सद्गुरू ज्ञान समर्थ है आपके मन जो आपको भटका रहा है उसे फटका लगाकर आपको सदमार्ग में लगाने का कार्य करते हैं ,बशर्ते ज्यादातर साधक उनके प्रहार से टूट जाते हैं।
साधक में भी हिम्मत होनी आवश्यक है चाहे कैसे भी फटके लगे तत्व ज्ञान को जानने के लिए अडिग रहें और सत्कर्म करते रहें ,
चाहे जितने भी फटके सहने पड़े गुरु के सानिध्य ना छोड़े मान अपमान निंदा स्तुति खट्टे मीठे सब कुछ सहते रहे ।
Focus Word
सद्गुरु के अनुसार अगर साधक चलता रहे तो उन्हें मंजिल मिलने में दूर नहीं है चूंकि सद्गुरु वही पहुंचा देंगे जहां वह खुद स्थित है परमानंद ,आनंद स्वरूप, आत्मा को जना देंगे । यह पद यैसा है जहां सुख – दुख कुछ भी नहीं सिर्फ आनंद ही आनंद है ।
साधना में सफलता, साधना में सावधानी ईस लेख में बताइए जानकारी जरा सा भी अच्छा लगता है तो आप इसका पालन करें और साधना में आगे बढ़े साधना में सफलता साधना में सावधानी या लेख सिर्फ आपके लिए था कि आप परमात्मा की रास्ते पर चले मैं परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि आपका मन सदा परमात्मा की ओर लगा रहे । साधना में सफलता, साधना में सावधानी साधकों तक पहुंचा कर पुण्य लाभ अवश्य कमायें। धन्यवाद